Wednesday, October 6, 2010

बिहारी बेताल

From www.apnabihar.org


बेताल आज पेड़ पर उलटा लटकने के बजाय बिल्कुल सीधा अपने पैरों पर खड़ा होकर आसमान निहार रहा था। खद्दरधारी बेताल कभी अपनी टोपी(नेताजी वाली) को जमीन पर फ़ेंकता, उसे उठाने जमीन पर उतरता और फ़िर पेड़ की टहनी पर जा खड़ा होता। अंधेरा होने का इंतजार कर रहा बिक्रम उसे घूरे जा रहा था। उससे रहा न गया। वह जा पहूंचा बेताल के पास। बेताल गाये जा रहा था – इब्ने बतूता, पहन के जूता, निकल पड़े तुफ़ान में, थोड़ी हवा नाक में घुस गई, घुस गई थोड़ी कान में, इस बीच निकल पड़ा उन्के पैरों का जूता, उड़ते-ऊरते उनका जूता जा पहूंचा जापान में, इब्ने बतूता खड़े रह गये मोची की दूकान में।

बिक्रम हक्का बक्का रह गया। उसने पूछा कि क्यों भई बेताल, आज भंग पी ली है क्या। बेताल ने कहा – हीं हीं हीं, राजा तुम परले सिरे के मुर्ख हो। देखते नहीं आसमान में कितने इब्ने बतूता चक्कर काट रहे हैं और ये देखो उनका जूता मतलब उनकी टोपी तो मेरे पास है। आने दो इनको तब बतायेंगे कि उड़नखटोले पर चढकर मजे लेना और बिहार के सड़कों पर लखटकिया गाड़ी की सवारी में कितना अंतर है। बिक्रम ने कहा ये कौन सी नई बात कह रहे हो। बिहार की जनता अब सब जानती है। सब के सब नेता एक से बढ्कर एक हैं। देख नहीं रहे कैसे वे एक दूसरे की पगड़ी उछल रहे हैं। जनता भी बेचारी उनकी गुलाटी देखकर खुश हो रही है, तुम्हें क्यों मिर्ची लग रही है। नेता भी खुश और जनता भी, भला तुम क्यों शोर मचा रहे हो। अब जल्दी से मेरे कंधे पर सवार हो जाओ, वर्ना।

बेताल बिदक कर बोला – अबे हट, तेरी तो ऐसी की तैसी। अब मैं बिहार का नागरिक हूं। जानते नहीं यहां सुशासन चलता है, तुम्हारा वाला राज गया, जब तुम जैसे राजा रानी के पेट से पैदा होते थे। अब तो राजा गरीब के झोपड़े से पैदा होता है। अरे मैं तो तुम्हें बताना भूल ही गया। मुझे भी कई दलों ने नेता बनने का आफ़र दिया है। दिल्ली में राज कर रही एक पार्टी ने तो मुझे नेता बनने के लिये हर तरफ़ के आफ़र दिये हैं। सुनोगे तो तुम्हारी आंख फ़ट जायेगी। बिहार में सत्ताधारी पार्टी ने तो मुझे अभी से मंत्री का दर्जा देने का वादा कर दिया है। अब नहीं चाहिये मुझे तुम्हारा कंधा। जरा देखो अपनी पोशाक और मेरी ओर देखो। तुम किसी नौटंकी के किरदार लगते हो और मैं आज के बिहार का नेता। मैं नहीं आने वाला तुम्हारे साथ।

बिक्रम को तो जैसे काठ मार गया हो। उसने देखा कि अब मुंडा बिगड़ गया है। ये सब चुनावी असर है, इसलिये गद्दी बचानी है तो मुझे भी सियासत करनी चाहिये। वर्ना गई भैंस पानी में। उसने बेताल से कहा – मेरे भाई, मेरे कुर्सीदाता, मेरे हम्दम मेरे मेरे दोस्त। मैं भी चुनाव लड़ूंगा, तुम जिस दल से कहोगे मैं उसी दल का झंडा लहराऊंगा। तुम जिस नेता का झोला टांगने को कहोगे, मैं टांगूंगा। अच्छा चलो मैं भी तुमसे वादा करता हूं जब मुझे गद्दी मिल जायेगी तब मैं तुम्हें डिप्टी वाला पद तुम्हें दे दूंगा।

बेताल बोला- अबे जा, जरा अपनी औकात तो देख। कौन बनायेगा तुम्हे अपना झोलटंगवा कार्यकर्ता। हाथ में तलवार, वह भी चुनाव के समय्। अरे भाई हाथ में तलवार लेकर थोड़े न कोई नेता बनता है। जिसके दांत मुंह के बजाय पेट में हो, जिसके पास तलवार के बजाय अदृश्य ए के 56 हों, जो जनता को पीठ में खंजर भोंकने के ब्जाय उनके पीठ सहलाये और फ़िर उनके कमर के नीचे लात मारे, वही नेता बन सकता है। देखा नहीं ई जो नीतीश कुमार है, उ कैसे गुलाटी मारा। पहिले तो सब गरीब के बोला हम भूमि सुधार करेंगे। कल्कत्ता के एक औघड़ को बुलाया। पता नहीं लेकिन हमको लगता है उसको पैसा भी नहीं दिया। इसलिये उस औघड़ ने पूरे बिहार में एक प्रेत छोड़ दिया है। बिक्रम बोला- अरे नही बेताल उ औघड़ नहीं डी बंद्योपध्याय साहब हैं देश के जाने माने भूमि सुधारक्। बेताल बोला- हमको मालूम है, अब मेरा माथा मत घुमाओ। हां तो हम कह रहे थे कि नीतीश कुमार के तो जमीने खत्म हो गया इस बटाईदारी के कारण। बेचारे ने सोचा था कि बटाईदारी लायेंगे, गरीबों को खुश करेंगे और मजे से लालू राबड़ी की तरह 15 साल तक राज भोगेंगे। लेकिन हुआ क्या। बिक्रम ने कहा – क्या हुआ नीतीश कुमार को?

बेताल बोला- तुमको दिखाई नहीं देता, उतना देर से हम आसमान की ओर क्यों देख रहे थे। अरे हम तो ऊ नीतीश कुमार को खोज रहे हैं। उसने एलान किया है वह चुनाव प्रचार करने हेलीकाप्टर से जायेगा। एसी गाड़ी में घुमेगा, खूब मुर्गा भात खायेगा और गरीबों के साथ गरीब बनने के लिये गांव में रहने का अभिनय करेगा। अभी तुम रुको। अभी मेरा समय नहीं हुआ है। जब समय हो तब आना। अभी तो हमको कुछ और भी नजर आ रहा है। अभी जाओ

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