Wednesday, October 7, 2009

खगडिया नरसंहार पर नीतीश बोल रहे हैं सफेद झुठ

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने हालिया बयान में कहा है कि खगडिया जिले के अलौली प्रखंड के अमौसी गांव में दिनांक 2 अक्टूबर 2009 को घटित घटना के पीछे गुंडों का हाथ था। जबकि लगभग पटना से प्रकाषित सभी समाचार पत्रों में यह जगजाहिर हो चुका है कि उक्त नरसंहार में गुंडों का हाथ नहीं है बल्कि यह एक सोची समझी साजिष है। इसके अलावा यह भी महत्वपूर्ण है कि राज्य सरकार के मुखिया स्वयं इस घटना के कारण आहत हैं। इनके आहत होने के कई कारण हैं। पहला कारण तो यह कि यह घटना इनके अपराध पर नियंत्रण के दावे को खारिज करता है। दूसरा यह कि इस घटना में मारे गये सभी लोग कुर्मी एवं कोईरी जाति के थे। यहां यह उल्लेखित करना आवष्यक है कि वर्तमान में बिहार में इन दोनों जातियों को सरकारी जाति के उपनाम से पुकारा जाता है। तीसरा सबसे अहम कारण यह है कि अबतक जो तथ्य सामने आ रहे हैं उनमें हमलावरों के महादलित होने की बात कही जा रही है।इन तथ्यों के अलावा यह भी एक महत्वपूर्ण है कि पिछले विधानसभा उपचुनाव में भूमि सुधार के कारण राजद-लोजपा गठबंधन के हाथों करारी षिकस्त खाने वाली राज्य सरकार किसी प्रकार भूमि सुधार के पूरे मामले को रफा दफा करना चाहती थी। यही कारण रहा कि उपचुनाव में हार के बाद जहां नीतीष कुमार की सहयोगी भाजपा के नेताओं ने इस मामले में विद्रोह का रूख अपना लिया था। खगडिया में घटी घटना के बाद यह स्पश्ठ हो गया है कि इस घटना की पृश्ठभाूमि भी भूमि सुधार ही रहा है।इसके अलावा अमौसी नरसंहार की बात करें तो सबसे पहले यह जानना आवष्यक है कि अमौसी गांव में मुख्य रूप से मांझी समुदाय के लोग रहते हैं। खगडिया जिले के अलौली प्रखंड के आनंदपुर मारण पंचायत के इस गांव में आने जाने का मार्ग काफी दुर्गम है। लोगों के लिए नाव ही एकमात्र सहारा है। इसके अलावा इस गांव के रकबा (गांव की कुल भूमि) में करीब 92 प्रतिषत भाग पर पडोस के गांव के लोगों का कब्जा है। इन्हीं पडोस गांवों में एक गांव इचरूआ भी है जहां के निवासियों की अधिकांष खेत अमौसी गांव में हैं। अमौसी गांव के लोगों ने बताया कि इचरूआ में मुख्य रूप से कुर्मी रहते हैं जो प्रारंभ से ही उनसे खेतों में जबरन मजदूरी कराते थे। अमौसी गांव के एक वृद्ध सहेंद्र सदा ने बताया कि करीब 30-35 साल पहले भूदान के तहत इन लोगों को जमीन देने का वायदा किया गया था। इस संबंध में उस समय खेतों की पैमाईष(माप) भी की जा चुकी है तथा खाता संख्या 2 के खेसरा संख्या 1540 के तहत करीब 70 बीघा जमीन अमौसी गांव के 130 महादलित परिवारों में वितरित किया जा चुका है और इसके पर्चे भी इन्हें दिये जा चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद इचरूआ गांव के लोगों ने अमौसी के महादलितों को जमीन पर कब्जा नहीं करने दिया। जब गांव वालों का प्रतिरोध बढा तो इचरूआ गांव के लोगों ने अपने घर से दूर जाकर अमौसी में ही अस्थायी झोपडी बना लिया। इन झोपडियों में ये अपने मवेषी रखते थे। अमौसी गांव में षौचालय की व्यवस्था नहीं होने के कारण जब महिलायें रात में अथवा भोर में बाहर जाती थीं तो उन्हें कई बार अपमानित भी होना पडता था। इस संबंध में एक बलात्कार का प्रयास करने संबंधी मामला भी स्थानीय अलौली थाना में दर्ज किया जा चुका है।हांलाकि अमौसी गांव के लोग स्वयं को बेकसुर बताते हुए कहते हैं कि इचरूआ गांव की तुलना में उन लोगों की संख्या महज एक तिहाई है तथा इचरूआ के घर-घर में दोनाली है। इस परिस्थिति में हम निर्बल उनका हिंसात्मक प्रतिकार कैसे करते हैं। गांव वालों के इस कथन की सत्यता अथवा असत्यता जांच का विशय है परंतु एक बात जो इनके पक्ष में जा रही है, वह है नरसंहार के मुख्य आरोपी ओपी महतो उर्फ उपेंद्र महतो जो स्वयं कुर्मी हैं। एक सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इनके एक परिजन दिनांक 4 अक्टूबर को मुख्यमंत्री से मिलने आये इचरूआ गांव के निवासियों में षामिल थे।अलौली के भिखारी घाट के एक निवासी ने बताया कि यदि वर्तमान में नीतीष कुमार की जगह कोई और मुख्यमंत्री होता तो अबतक अमौसी गांव को लाष के पाट दिया गया होता। इसका कारण बताते हुए ये कहते हैं कि मुख्यमंत्री ने महादलित की राजनीति की दुहाई देकर फिलहाल इस मामले को दबा दिया है। हांलाकि मुख्यमंत्री स्वयं इस बात को जानते थे कि इचरूआ के कुर्मी काफी सबल हैं और यही कारण रहा कि घटना का मुआयना करने के लिए इन्होंने अपने नायब सिपालसलार उपमुख्यमंत्री सुषील कुमार मोदी को भेजा।असल में मुख्यमंत्री नीतीष कुमार पूरे मामले को छिपाने का असफल प्रयास कर रहे हैं। इनकी पूरी कोषिष है कि भूमि विवाद के मामले को दबा दिया जाये ताकि बिहार के सवर्ण एवं सामंती मतों पर इनका खोया अधिपत्य वापस मिल सके। जबकि इनके मुख्य विपक्षी राजद-लोजपा भी कुर्मी और भूमि सुधार के मामले पर केवल मृतकों परिजनों के लिए मुआवजा की मांग कर घडियाली आंसू बहा रहे हैं।

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