यादव जी कहिन - अपने 4 साल के मुख्यमंत्रित्व काल में आपने जमीन पर कुछ किया हो या नहीं लेकिन एक काम आपने बहुत जोर शोर से किया है और यह काम है आयोग बनाने का। पावर में आते ही आपने बिहार की वित्तीय व्यवस्था पर श्वेत पत्र जारी किया ताकि दुनिया ये जान सके कि पहले वाली सरकार( जिसे आप जंगलराज कह्ते थे ) ने बिहार को किस तरह बदहाल किया। खैर पहले वाली सरकार तो अपने चमचों और बेलचों के कारण आज अपने न्युनतम स्तर को प्राप्त कर चुकी है परंतु आपने आयोगों का जाल बना दिया। पहले डी बंध्योपध्याय की अध्यक्षता मे भूमि सुधार आयोग, मुच्कुंद दूबे की अध्यक्षता में समान स्कूल प्रणाली आयोग, महादलित आयोग आदि आयोगों के माध्यम से आपने हम बिहार वासियों को यह कहकर ठगते रहे कि सरकार इन आयोगों के अनुशंसाओं को अमल में लायेगी।
परंतु न तो वी एस दूबे वाली प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा की गयी अनुशंसाओं को आपने लागू किया और न ही डी बंध्योपध्याय वाली भूमि सुधार आयोग के अनुशंसाओं को। पहले की सरकारों और आप की सरकार में सबसे बड़ा फ़र्क यह है कि पहले कोई भी रिपोर्ट विधान मंडल मे रख़ी जाती थी, विचार विमर्श किया जाता था और आपने तो हिटलर को भी हरा दिया। न तो कोई रिपोर्ट सदन में रख़ा जाता है और न ही कोई विचार विमर्श किया जाता है। डी बंध्योपध्याय की रिपोर्ट को आपने अधुरी रिपोर्ट की संग्या दी। बिहार की जनता यह जानना चाहती है कि क्या राज्य सरकार को पहले से पता नहीं था कि बंध्योपध्याय काबिल नहीं काहिल हैं? करोड़ों रुपये ख़र्च होने के बाद जब रिपोर्ट बनी और लागू करने की बात आयी तो मुंह चिहाड़ के हंस रहे हैं और कह रहे हैं कि रिपोर्ट अधुरी है सो लागू नहीं किया जा सकता। आपको यह बताना चाहिये कि बंध्योपध्याय आयोग पर कितने पैसे ख़र्च हुए और जब रिपोर्ट ही अधुरी तो उन पैसों की भरपाई कौन करेगा।
पिछले साल बाढ आयी आपने कोसी जांच आयोग बना दिया। इस साल बाढ आयी आपने फ़िर से जांच आयोग बना दिया। असल में आपको काम करने का मन ही नहीं है इसलिये केवल बहाना बनाते रह्ते हैं। आपको शर्म आती भी है या नहीं। हम लोग मरते हैं और आप आयोग बनाते हैं। अख़बारों में मुंह चिहाड़ के हंसते हैं। धन्य हैं आप। वाकई आप बिहार के महानतम सपूतों में से एक हैं।
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