आदरणीय जोशी जी,
सादर प्रणाम,
सविनय निवेदन है कि आपकी महानता को शत प्रतिशत प्रकट करने में सक्षम कोई शब्द इस समय मेरे मानस पटल पर अंकित नहीं हो पा रहा है। इस समय मेरी सबसे बड़ी समस्या यह है कि मेरी लेखनी और मेरा मस्तिष्क दोनों सीमायें तोड़ देना चाहते हैं। युं लग रहा है मानों मेरे अंदर आहर(पईन) रुपी मस्तिष्क के दोनों किनारे आपकी महानता के प्रवाह के आवेग से टूटते से जा रहे हैं। मेरे रगों में उबाल मुझे आपकी महानता पर स्वयं को बलिदान करने हेतु प्रेरित कर रहा है। मेरे शरीर का कतरा-कतरा आपके "कोरे कारद" पर फ़ैल कर उसे अपनी सार्थकता साबित करना चाहते हैं।
मैं जानता हूं कि मेरे लहू का एक कतरा भी आपके ब्राहमणत्व को सर्वश्रेष्ठ साबित नहीं करने में सफ़ल नहीं हो सकता क्योंकि आपके शरीर के अंदर जो रक्त है वह हम शूद्रों के रक्त से पृ्थक है। मुझे उस कबीर पर दया आ रही है जिसने कभी यह कहने की गुस्ताख़ी की थी कि-
तुम कत ब्राहम्ण हम कत शुद, हम कत लोहू तुम कत दूध ।
जो तुम ब्राहम्ण-ब्राहम्णी जाया, फ़िर आन बाट काहे नहीं आया॥
असल में वह कबीर भी मेरी तरह या फ़िर आम्बेदकर या आज के राजेंद्र यादव की तरह कोई सिरफ़िरा था जिसके सर पर कुछ कर गुजरने की धुन सवार था। बिना यह सोचे कि पुष्यमित्र शुंग आस्तिन का सांप है और आज जो हम इसे दूध पिला रहे हैं वह इसका थोड़ा भी मूल्य चुकाने की इच्छा रख़ता है। इतिहास साक्षी है कि आजादी देश के बाहम्णों को मिली क्योंकि आज तक देश पर शासन तो इन्हीं ब्राहम्णों को ही मिली है। हमारे नेता तो बस कभी नेहरु की जयकार या इन्दिरा की वंदना और अब सोनिया गांधी का वरदहस्त पाने के आस में आरती गान कर रहे हैं। हमारी इस स्थिति के लिये न तो आप जिम्मेवार हैं और न ही आपका ब्राहमणत्व। इसके लिये हम खुद ही जिम्मेवार हैं।
खैर आप, आपका क्रिकेट और आपकी महिला पाठक (जिसका जिक्र आपने रविवार डाट कौम पर प्रकाशित साक्षात्कार में किया है) तीनों अतुलनीय हैं। देश में महंगाई हो, बाढ हो, आतंकवाद से भारत माता का कलेजा छलनी हो जाता हो, आपका और इन्डिया का क्रिकेट दोनों देश में घटित किसी भी अन्य महत्वपूर्ण घटना से अधिक महत्वपूर्ण है। तभी तो दूरदर्शन भी क्रिकेट मैचों के सीधा प्रसारण के लिये एक दिन में अरबों तक खर्च करने को तैयार हो जाता है। यह सब आपके ब्राहमणत्व का परिणाम है क्योंकि हम शूद्रो का शूद्र्त्व कभी भी नून रोटी को छोड़ किसी अन्य वस्तु अथवा विषयों के बारे में सोचने की इजाजत भी नहीं देता। आखिर हम ठहरे भी तो निरे शूद्र।
आप का क्रिकेट प्रेम हमारे लिये प्रेरणाश्रोत है परंतु हम करें भी तो क्या करें कहीं हमारे घर में बिजली नहीं है तो कहीं टेलीविजन नहीं है। कहीं टेलीविजन है भी तो आपका क्रिकेटिया विजन नहीं है। हमें तो धोनी भी उतना ही अच्छा लगता है जितना कि सचिन तेंदुलकर्। हम तो जानते भी नहीं थे कि गावस्कर और तेंदुलकर भारतीय न हो पहले ब्राहम्ण हैं। हम तो बस इतना जानते हैं कि आपके क्रिकेट मैच की बराबरी नहीं कर सकते क्योंकि आप इन्टर्नेशनल पिचों पर खेलकर देश का नाम बढाते हैं जबकि हम पूरा बचपन गिल्ली डंडा के सहारे बीता कर जवानी में सारी उम आपकी बेगारी कर सकते हैं। आपके क्रिकेटिया मैच में वह चाहे इन्डिया जीते या हारे हार तो हम भारत वंशियों की ही होती है।
आपने क्रिकेट प्रेम के सहारे मीडिया जगत में एक ऐसी लकीर खिंच दिया है जिसे पार करना न हमारे वश में है और न ही पार करने की इच्छा ही है। आपके वेदों ने हमें बताया है कि हम शूद्र एकलव्य तो हो सकते हैं लेकिन अर्जुन नहीं हो सकते हैं। आपके द्वारा 5000 साल पहले स्थापित सच आज भी भारतीय खेलों मे जिंदा है अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार के रुप में, जबकि सभी यह मान्ते हैं कि अर्जुन कितने बड़े धनुर्धारी थे और आप जैसे द्रोणाचार्य कितने मेधावी। मौका मिले तो पटना युनिवर्सिटी अवश्य घूमें आपको थोक के भाव में द्रोणाचार्य मिल ही जायेंगे।
आप्ने सही कहा है कि ब्राह्म्ण सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि हमारे नेता कभी भी अटल बिहारी वाजपेयी हो सकते हैं परंतु हमारे नेता लंपट लालू से ज्यादा अधिक नहीं हो सकते।
लिखने को बहुत कुछ है लेकिन आपके ब्राहम्णत्व के समय का अधिक हिस्सा लेकर मैं पूण्य का हकदार नहीं बनना चाहता क्योंकि आप महान, आपका क्रिकेट महान और आपका ब्राह्म्णत्व महान है क्योंकि हम शूद्र हैं।
आपका एकलव्य
नवल किशोर कुमार
ब्रहम्पुर, फुलवारी शरीफ़, पटना-801505
मो-9304295773
Monday, August 31, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment